भगवान् का अनुभव ध्यान के द्वारा कैसे हो?

How to get an experience of God through meditation? भगवान् का अनुभव govardhan math puri shankaracharya swami nishchalanand saraswati pravachan

किसी श्रोता का प्रश्न - हम जब अपना ध्यान और साधना करते हैं तो अनुभूतियाँ जब होती हैं उसमें extreme level में जाने की इच्छा यदि है, कि हम ईश्वर से कैसे साक्षात्कार करें, तो उसका क्या मार्ग है? और उसकी अनुभूति कैसे होगी? 

शंकराचार्य जी का उत्तर - जो पारखी महापुरुष हैं, जिन्होंने यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि की घाटियाँ तय की हैं, जिनके मन की गति लोक, परलोक और परमात्मा तक अबाध है, उनका स्वस्थ मार्गदर्शन साधनमार्ग में अवश्य चाहिए। और अपने अधिकार तथा अपनी अभिरुचि दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करके साधन का स्वरूप तय करना चाहिए। आजकल होता क्या है कि कोई कलेक्टर है कल्पना कीजिए, ऐसे व्यक्तियों से मेरा बहुत पाला पड़ा है क्योंकि 56 वर्ष इस वेश में हो गये.. कोई कलेक्टर है, कदाचित् वह साधन के क्षेत्र में आता है तो उसकी कल्पना होती है कि व्यवहार में कलेक्टर है तो साधन के क्षेत्र में भी वह कलेक्टर है। जबकि वह अ, आ, ई भी साधन के सम्बन्ध में नहीं जानता। यह जो क्षुद्र व्यक्तित्व का व्यामोह है, उसे गिरा देता है? कोई करोड़पति है, करोड़ों से खेलता है, वह यह मानकर चलता है कि साधन क्षेत्र में भी वह करोड़पति है जबकि वह कंगाल है।

जो गुरु लोग होते हैं अवसरवादी, वे VIP समझकर कहते हैं - हाँ!हाँ! तुम ठीक चल रहे हो। बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! सीधे कुण्डलिनी जागरण करो, समाधी लगा लो। 
यह सब गुरुओं से भी बचने की जरूरत है। और VIP बनकर साधन के मार्ग में बिल्कुल अवरोध होता है गति नहीं होती। 
 पहले भावना के द्वारा इसका आंकलन करना चाहिए कि पञ्चदेव और उनके शास्त्रसम्मत अवतार में किसमें स्वभाव से अभिरुचि है?  कुलदेवी या कुलदेवता कौन हैं? इसके बाद आकलन करना चाहिए कि धर्म की घाटी कितने अंशों में पार कर चुके? धर्म का आलम्बन अवश्य होना चाहिए। फिर ईश्वर का आलम्बन, गुरु का आलम्बन, ग्रन्थ का आलम्बन। गुरु, ग्रन्थ और गोविन्द तीनों का आलम्बन जिसको प्राप्त है,  वह भगवान् की प्राप्ति की ओर चलता है।
 
तो योगमार्ग बहुत दुरुह है, भक्ति का मार्ग सुगम है। किसी-किसी का जीवन पूर्वजन्मों के संस्कार के फलस्वरुप योग के अनुकूल होता है। किसी का जीवन भक्ति के अनुकूल होता है। मर्यादा का पालन और सगुण-साकार भगवान की आराधना, सबसे पहले इन दोनों का बल होना चाहिए। जो इष्ट हैं, उनके स्वरूप, माहात्म्य को बताने वाले जो ग्रन्थ हैं उनका अनुशीलन करना चाहिए। गीताप्रेस से बहुत से विशेषांक निकले हैं। सूर्य भगवान् को लेकर, गणेश जी को लेकर, विष्णु जी को लेकर, भगवती को लेकर, राम जी को लेकर, भगवान् श्रीकृष्ण को लेकर, इस प्रकार अपने इष्ट के सम्बन्ध में जानकारी अर्जित करनी चाहिए। और कम से कम चौबीस घण्टे में सवा घण्टे के भजन का बल तो अवश्य होना चाहिए। ब्राह्ममहूर्त में सूर्योदय के पूर्व एक बार आसन पर बैठकर भजन करना चाहिए, फिर स्नान के पश्चात्, फिर मध्याह्न काल में, फिर सायंकाल में, फिर रात्रि में सोने से पहले। पाँच बार भजन का व्रत ले, इष्ट का चयन हो और गुरु का मार्गदर्शन हो।
 
सत्य वचन, आधीनता, पर तिय मातु समान। 
इतने पर हरि ना मिले, तो तुलसीदास जमान।।
 
 जमानत दी तुलसीदास जी ने - 
सत्य वचन - झूठ न बोलता हो। 
आधीनता - गुरु, ग्रन्थ और गोविन्द का अनुशासन मानता हो, उनके अनुगत हो। 
पर तिय मातु समान - पराई स्त्री में मातृ बुद्धि हो। 
अगर ये तीन साधन जीवन में हैं, तो तुलसीदास जी कहते हैं - मैं जमानत देता हूँ, अर्थात् मिले बिना नहीं रह सकते।
 
तुलसीदास जी ने यह भी कहा है -
 
बिगरी जन्म अनेक की सुधरे अबही आजु ।
होहि राम कौ नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।।
 
 अनेकों जन्म से बात बिगड़ गई है लेकिन बिगड़ी हुई बात भी आज ही और अभी बन सकती है। बहुत सुगम साधन बताया - राम जी का होकर राम जी का नाम लो। होय राम कौराम जी के होकर, राम जी से सम्बन्ध स्थापित करें। माता, पिता, सखा… इस प्रकार से सम्बन्ध स्थापित करके, रामजी का होकर, राम जी को अपना इष्ट समझ कर…. यानि भगवान् के आश्रित होकर भगवान् का नाम लें।
 
तुलसीदास जी ने कहा - 
बिगरी जन्म अनेक की सुधरे अबही आजु ।
होहि राम कौ नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु।।

तजि कुसमाज - खोटे मनुष्यों का सङ्ग त्यागने की… उनसे दूर रहने की आवश्यकता है।


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