स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण और रोग के प्रभेद :-
स्वस्थ व्यक्ति का लक्षण है आयुर्वेद के ग्रन्थों में वात, पित्त, कफ तीनों में किसी एक की प्रधानता ना हो, तीनों सम हों तब व्यक्ति स्वस्थ माना जाता है। पृथ्वी और जल… पृथ्वी ले लेंगे अन्न हमारे जीवन में… अन्न और जल के दूषित संघात से / तालमेल से कफ नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु विकृत हो जाए तो वात नामक रोग की प्राप्ति होती है। और अग्नि कुपित हो जाये/ विकृत हो जाये तो पित्त नामक रोग की प्राप्ति होती है। आकाश को लेकर स्वतः कोई रोग की प्राप्ति नहीं होती। ये जो चार भूत हैं ये सावयव माने गए हैं। कफ नामक रोग कब प्राप्त होगा - अन्न और जल जो जीवन में / शरीर में है उनमें विकृति आ जाने पर विकृत अन्न और जल के योग से कफ नामक रोग की प्राप्ति होती है। तेज / अग्नि कुपित हो जाये तो पित्त नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु कुपित हो जाये / विकृत हो जाये तो वात नामक रोग की प्राप्ति होती है। तीनों सम रहें तो स्वास्थ्य की सिद्धि होती है। ऐसा ही दर्शन के ग्रन्थों में लिखा है कि सत्व, रजस, तमस तीनों सम रहें तो व्यक्ति स्वस्थ माना जाता है। वात, पित्त, कफ ये तीनों सम रहने पर नीरोग व्यक्ति माना जाता है। तीन शरीर हैं, तीन प्रकार के रोग हैं। कारण शरीर अविद्या नामक रोग से ग्रस्त है। सूक्ष्म शरीर आधि (मनोविकार) नामक रोग से ग्रस्त है। स्थूल शरीर व्याधि नामक रोग से ग्रस्त है। आधि, व्याधि, अविद्या तीनों से जो मुक्त है वह स्वस्थ है, जीवनमुक्त है। अगर शरीर में व्याधि है तो… आयुर्वेद जो है वह दर्शन शास्त्र के अंतर्गत है, वेद के अंतर्गत है, उसमें पञ्चभूतों के आधार पर चिकित्सा चलती है। तो हमने बताया कि वात, पित्त, कफ को लेकर रोग की प्राप्ति होती है। तीनों में विकृति आ जाये तो उसका नाम है सन्निपात।
रोग के चार भेद होते हैं - वातज (वात रोग), पित्त जन्य रोग, और कफ (कफ का अर्थ हो गया अन्न, जल के दूषित संघात से कफ रोग की प्राप्ति होती है)। जठरानल में विकृति आ जाए/ शरीर की अग्नि में विकृति आ जाए पित्त नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु कुपित हो जाए तो वात नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु के उनचास प्रभेद होते हैं - उनचास मरुद्गण। तो वातरोग के भी उनचास भेद हो जाते हैं। 7 होते हैं फिर 7 को 7 से गुणा कर देने पर वात रोग के उनचास प्रभेद हो जाते हैं। तो वात, पित्त, कफ तीनों सम रहें और तीनों में विकृति आ जाये तो सन्निपात। रोग के कितने भेद हो गये- पाँच भेद होते हैं। ठोकर आदि लग जाने पर.. घायल हो गया। तो वात, पित्त, कफ क्या करेंगे? वह तो गिर पड़ा। आघात जन्य रोग… गिर पड़े। ऐसे रोग के पाँच भेद हो जाते हैं। आघातजन्य रोग माने चोट लग गयी, गिर पड़े, कहीं से खून निकलने लग गया। फिर वात को लेकर, पित्त को लेकर, कफ को लेकर… चार प्रकार के रोग यह हो गये। पाँचवाँ रोग है सन्निपात को लेकर। छठा रोग है मनोविकार को लेकर। तो रोग के कितने भेद हो गये- छः भेद हो गये। वात को लेकर, पित्त को लेकर, सन्निपात को लेकर और मनोरोग, और चोट आदि लग गयी तो… रोग के इतने प्रभेद हो गये।
रोग के चार भेद होते हैं - वातज (वात रोग), पित्त जन्य रोग, और कफ (कफ का अर्थ हो गया अन्न, जल के दूषित संघात से कफ रोग की प्राप्ति होती है)। जठरानल में विकृति आ जाए/ शरीर की अग्नि में विकृति आ जाए पित्त नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु कुपित हो जाए तो वात नामक रोग की प्राप्ति होती है। वायु के उनचास प्रभेद होते हैं - उनचास मरुद्गण। तो वातरोग के भी उनचास भेद हो जाते हैं। 7 होते हैं फिर 7 को 7 से गुणा कर देने पर वात रोग के उनचास प्रभेद हो जाते हैं। तो वात, पित्त, कफ तीनों सम रहें और तीनों में विकृति आ जाये तो सन्निपात। रोग के कितने भेद हो गये- पाँच भेद होते हैं। ठोकर आदि लग जाने पर.. घायल हो गया। तो वात, पित्त, कफ क्या करेंगे? वह तो गिर पड़ा। आघात जन्य रोग… गिर पड़े। ऐसे रोग के पाँच भेद हो जाते हैं। आघातजन्य रोग माने चोट लग गयी, गिर पड़े, कहीं से खून निकलने लग गया। फिर वात को लेकर, पित्त को लेकर, कफ को लेकर… चार प्रकार के रोग यह हो गये। पाँचवाँ रोग है सन्निपात को लेकर। छठा रोग है मनोविकार को लेकर। तो रोग के कितने भेद हो गये- छः भेद हो गये। वात को लेकर, पित्त को लेकर, सन्निपात को लेकर और मनोरोग, और चोट आदि लग गयी तो… रोग के इतने प्रभेद हो गये।
- पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी
Watch Video :- https://youtu.be/Yio_jtFJD8U